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रीवा/ मनगवां - विधायक पंचू लाल प्रजापति एवं सहयोगियों के द्वारा जान से मारने की धमकी दिए जाने को लेकर मनगवां थाने में दर्ज कराई गई शिकायती रिपोर्ट।

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विधायक के निजी सहायक ने एससी एसटी का मामला दर्ज करने पुलिस को भेजी शिकायती पत्र

थाना प्रभारी ने कहां जांच करा कर दोषियों पर की जाएगी कार्यवाही

रीवा बुलेट रिपोर्टर मनगवां विधायक पंचू लाल प्रजापति को लेकर लगातार विरोध जारी है रविवार को आईटी एवं सामाजिक कार्यकर्ता प्रकाश तिवारी अपने साथियों के साथ मनगवां थाना पहुंचकर विधायक पंचू लाल प्रजापति के खिलाफ आवेदन देकर रिपोर्ट दर्ज कराई है RTI कार्यकर्ता के द्वारा मनगवां थाना प्रभारी केपी त्रिपाठी को लिखे गए आवेदन रिपोर्ट में कहा गया है कि पंचू लाल प्रजापति बीजेपी सरकार सत्ता का धौंस देते हुए फर्जी मुकदमों में फंसाए जाने के साथ-साथ विधायक एवं उनके साथियों द्वारा जान से मारने की धमकी दी जा रही है इतना ही नहीं विगद दिनो अज्ञात वाहन से एक्सीडेंट कर जान से मरवाने का भी  प्रयास किया गया था लेकिन ‌भाग्य से बच गए इस घटना के बाद प्रकाश तिवारी एवं इनके साथी गण जिनके द्वारा तिवनी गांव में सड़क को लेकर विरोध किया गया था उन सभी पर जान का खतरा है RTI कार्यकर्ता ने लिखित शिकायती पत्र मे  यह भी कहा है कि मनगवां विधायक एवं उनके सहयोगियों द्वारा हमारे एवं साथियों के के परिवार के लोगों को भी जान का खतरा है कभी भी कुछ हो सकता है अतः इस पर पुलिस कानूनी कार्रवाई करें अन्यथा आंदोलन किया जाएगा इसकी जिम्मेदारी सरकार और प्रशासन की होगी  

वही 2 दिन पहले विधायक पंचूलाल प्रजापति के निजी सहायक कमल किशोर पांडेय.... के द्वारा मनगवां थाने में एक शिकायत भेजी है जिसने लिखा गया है कि प्रकाश तिवारी निवासी तिवनी के द्वारा एफबी पोस्ट में सड़क को जोड़कर  विधायक के संबंधित पत्र को जोड़कर एक पोस्ट की गई थी जिस पर जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए गालियां दी गई थी जो जघन्य अपराध है अतः तत्काल प्रकरण दर्ज कर कार्यवाही सुनिश्चित करें।

विधायक पंचू लाल प्रजापति के निज सहायक द्वारा जारी पत्र एव RTI कार्यकर्ता प्रकाश तिवारी के द्वारा थाने में दिए गए लिखित आवेदन के बाद मामला काफी पेचीदा हो गया है और अब किरकिरी हो रही है!

वही थाना प्रभारी केपी त्रिपाठी ने बताया है कि.... RTI कार्यकर्ता प्रकाश तिवारी साथियों के साथ थाना में पहुंचकर लिखित शिकायत आवेदन दिया है जिसकी जांच के लिए एसआई आर एम प्रजापत को सौंपी गई है वही विधायक के निजी सहायक द्वारा भेजी गई शिकायत को भी जांच में लिया गया 
इनका क्या है कहना

डॉक्टर पंचूलाल प्रजापति ,मनगवां विधायक
15 दिन से हम भोपाल में उपचार करा रहे हैं। किसी को धमकी देने का सवाल ही नहीं होता। जनहित के कार्यों पर लगातार ध्यान दिया जा रहा है। राजनैतिक साजिश के तहत इस तरह की शिकायत किसी ने की है तो उन्हें इसकी जानकारी नहीं है।
के पी त्रिपाठी थाना प्रभारी
प्रकाश तिवारी ने अपने साथियों के साथ थाना आकर विधायक के खिलाफ लिखित शिकायत की है इस शिकायत की जांच कराई जा रही है विधायक के निजी सहायक भी एक शिकायत भेजी गई है उसे भी जांच में लिया गया है जांच में जो भी तथ्य आएंगे उस पर वैधानिक कार्रवाई होगी।

Rewa News - जिला पंचायत अध्यक्ष अभय मिश्रा और विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम पर लगे गंभीर आरोप, क्या है मामला पढ़ें खबर।

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रीवा टाइम्स नाउ/रीवा न्यूज/रीवा रियासत/विंध्य टाइम्स/एमपी न्यूज


रीवा -जिला पंचायत उपाध्यक्ष विभा पटेल ने जिला पंचायत अध्यक्ष अभय मिश्रा पर सैकड़ो गुन्डे बुलाकर हमले की साजिश रचने का लगाया आरोप

वही जिला पंचायत सदस्य जयवीर सिंह सेंगर ने विधान सभा अध्यक्ष एवं जिला पंचायत अध्यक्ष अभय मिश्रा पर हत्या का षड्यंत्र रचने का लगाया आरोप
रीवा मे आज राजनिती का गिरता हुआ स्वरुप आया सामने जीला पंचायत कार्यालय मे आज गुटीय और दलगत राजनीति का घिनौना रूप देखने को मिला। जहाँ जिला पंचायत की उपाध्यक्ष विभा पटेल और कुछ सदस्यों ने जीला पंचायत अध्यक्ष अभय मिश्रा पर कई आरोप लगाये वही जीला पंचायत सदस्य जयवीर सिंह और बाकिल सदस्यों ने विधान सभा अध्यक्ष गिरीश गौतम और जिला पंचायत अध्यक्ष अभय मिश्रा पर साजिश रचने का आरोप लगाया है बता दें की जिला पंचायत रीवा मे समीक्षा बैठक आयोजित की गई थी। जिसमे जिला पंचायत अध्यक्ष अभय मिश्रा द्वारा एक ही क्षेत्र मे बार बार करोड़ो रुपये खर्च किये जाने का जिला पंचायत उपाध्यक्ष विभा पटेल ,सदस्य जयवीर सिंह सेंगर सहित अन्य सदस्यों ने विरोध किया। वही जीले मे हो रहे दारू के व्यापार पर भी सवाल खड़ा किये वही एक छेत्र मे बार बार करोड़ो खर्च ने सवाल किया तो जीला पंचायत अध्यक्ष ने जवाब दीया की मे सदस्यों की सहमती से किया गया अगर आप लोगों क़ो आपत्ति होतो आप आपत्ति दर्ज करा दीजिये बाकिल उससे होने वाला कुछ नहीं है जिसके बाद हंगामा और विवाद की स्थिति निर्मित हो गई और अध्यक्ष अभय मिश्रा बैठक छोड़ कर चले गये। कुछ ही देर बाद जिला पंचायत मे सैकड़ो गुन्डे और असामाजिक तत्व एकत्रित हो गये। वही ज़ब सभा से निचे उतरे जीला पंचायत सदस्य जयवीर सिंह ने निचे देखा की इते लोग खड़े है वजह क्या है ज़ब पुरे मामले क़ो उनको पता चली तो वो बाकिल सदस्यों क़ो फोन करके बताये जिससे कई सदस्य जान बचाकर इधर उधर से निकल लिये।लेकिन उपाध्यक्ष विभा पटेल,सदस्य अविनाश शुक्ला,जयवीर सिंह सेंगर सहित कई अन्य सदस्य अंदर ही घिर गये। जिन्हे मुख्य कार्यपालन अधिकारी स्वपनिल वानखेड़े ने किसी तरह उनके वाहनो मे बैठाकर वहां से रवाना किया। जिसके बाद उपाध्यक्ष विभा पटेल सहित अधिकांश सदस्य कलेक्टर इलैया राजा टी और नवागत पुलिस अधीक्षक नवनीत भसीन से मिलकर सारे घटना क्रम से अवगत कराया। इसके बाद उपाध्यक्ष विभा पटेल ,सदस्य जयवीर सिंह सेंगर,और सदस्य अविनाश शुक्ला ने पत्रकारो से चर्चा करते हुये प्रदेश की राजनीति मे भूचाल ला दिया।जहां सभी ने जिला पंचायत अध्यक्ष अभय मिश्रा पर गुण्डे  बुलाकर हमला करवाने का प्रयास करने का आरोप लगाया।सदस्य अविनाश शुक्ला ने तो अभय मिश्रा पर पूरे जिले मे अवैध शराब की बिक्री करने का आरोप लगाया वहीं जिला पंचायत सदस्य और देवतालाब विधान सभा के उम्मीदवार रहे जयवीर सिंह सेंगर ने सीधे सीधे विधान सभा अध्यक्ष गिरीश गौतम पर उनकी हत्या करवाने का प्रयास करने और अभय मिश्रा को पूरा संरक्षण देने तथा शराब माफिया को मदद करने का आरोप लगाते हुये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से जान की रक्षा करने की गुहार लगाई।साथ ही विधानसभा अध्यक्ष को उनके पद से हटाने की माग भी मुख्यमंत्री से कर डाली।

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Season 5 of the much-anticipated and well-known Netflix show 'Money Heist' was launched today (September 3). rsula Corberó portrays Tokyo, lvaro Morte portrays The Professor, Itziar Ituo portrays Lisbon, Miguel Herrán portrays Rio, Jaime Lorente portrays Denver, Esther Acebo portrays Stockholm, and Hovik Keuchkerian portrays Bogota.

However, fans will be disappointed to learn that Alex Pina's 'Money Heist' season 5 has been the newest target of piracy sites such as Tamilrockers, Telegram, and movierulz, among others.


'Money Heist' season 5 was leaked on numerous torrent sites in full HD quality for free download just hours after it was released. The fact that it was leaked is certain to be a major setback for the producers, as it will have an impact on their earnings.

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The Professor and his squad are scheduled to loot the Royal Mint of Spain in the fifth season of Money Heist to take the highest sum ever stolen. Money Heist Season 5 will premiere soon, and it will be equally as exciting and thrilling as the previous seasons. Here's all you need to know about season 5 of Money Heist.

The show would be split into two sections. The first volume of this series will be released on September 3, 2021. The second volume, as well as the final section of the final season, will be released on December 3, 2021.

Money Heist will include two more episodes in Season 5 than in prior seasons, according to an insider. The first five episodes would be included in volume one. The remaining five episodes will be released exactly three months later.

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A year is a long time – long enough for a feared epidemic to develop lethal mutations and for regimes to rise and fall. However, in the world of Money Heist, time has not only slowed, but has also appeared to be frozen. The shots that were fired in season 4 of the Spanish show are now reaching their targets. The Netflix show, however, more than makes up for the wait by delivering a shock and awe lesson. Money Heist's last season doesn't so much bring the curtain down as it does throw down a large grenade and set the place on fire. The sultry red gang dives right into the action and doesn't let up. You had best be ready for the journey because they aren't going to make things easy for you. It's all systems go, baby.

Inspector Alicia Sierra captures The Professor from his hiding in the first episode, shortly after Lisbon's entry into the Bank of Spain.


पूना पैक्ट:- आखिर क्यों हैं,भारत में आरक्षण व्यवस्था जाने क्या है तथ्य।

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24 सितंबर पूना पैक्ट दिवस पर विशेष
24 September Poona Pact Day Special 

भारतीय हिन्दू समाज में जाति (Caste in Indian Hindu Society) को आधारशिला माना गया है. इस में श्रेणीबद्ध असमानता के ढांचे में अछूत सबसे निचले स्तर पर हैं, जिन्हें 1935 तक सरकारी तौर पर ‘डिप्रेस्ड क्लासेज‘ (Depressed classes) कहा जाता था. गांधी …

Rewa Times Now/ Rewa News/ Indian History


पूना पैक्ट दलित गुलामी का दस्तावेज़

भारतीय हिन्दू समाज में जाति (Caste in Indian Hindu Society) को आधारशिला माना गया है. इस में श्रेणीबद्ध असमानता के ढांचे में अछूत सबसे निचले स्तर पर हैं, जिन्हें 1935 तक सरकारी तौर पर ‘डिप्रेस्ड क्लासेज‘ (Depressed classes) कहा जाता था. 

गांधी जी ने उन्हें ‘हरिजन’ के नाम से पुरस्कृत किया था, जिसे अधिकतर अछूतों ने स्वीकार नहीं किया था. अब उन्होंने अपने लिए ‘दलित’ नाम स्वयम्   चुना है जो उनकी पददलित स्थिति का परिचायक है. वर्तमान  में वे भारत की कुल आबादी का लगभग छठा भाग (16.20 %) तथा  कुल हिन्दू आबादी का पांचवा भाग (20.13 %) हैं.अछूत सदियों से हिन्दू समाज में सभी प्रकार के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक व शैक्षिक अधिकारों से वंचित रहे हैं और काफी हद तक आज भी हैं.

Dalits have a long history of struggle to get equal status in Hindu society and politics.

दलित कई प्रकार की वंचनाओं एवं निर्योग्यताओं को झेलते रहे हैं.  उनका हिन्दू समाज एवं राजनीति में बराबरी का दर्जा पाने के संघर्ष का एक लम्बा इतिहास रहा है. जब श्री. ई.एस. मान्तेग्यु, सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट फॉर इंडिया,  ने  पार्लियामेंट में 1917 में यह महत्वपूर्ण घोषणा की कि “अंग्रेजी सरकार का अंतिम लक्ष्य भारत को डोमिनियन स्टेट्स देना है तो दलितों ने बम्बई में दो मीटिंगें करके अपना मांग पत्र वाइसराय तथा भारत भ्रमण पर भारत आये सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट फॉर इंडिया को दिया. परिणामस्वरूप निम्न जातियों को विभिन्न प्रान्तों में अपनी समस्यायों को 1919 के भारतीय संवैधानिक सुधारों के पूर्व भ्रमण कर रहे कमिशन को पेश करने का मौका मिला.तदोपरांत विभिन्न कमिशनों, कांफ्रेंसों एवं कौंसिलों  का एक लम्बा एवं जटिल  सिलसिला चला. सन 1918 में मॉन्टेग्यु चेम्सफोर्ड रिपोर्ट (Montagu Chelmsford Report in 1918) के बाद 1924 में मद्दीमान कमेटी रिपोर्ट (muddiman committee 1924 in hindi,) आई जिसमें कौंसिलों में डिप्रेस्ड क्लासेज के अति अल्प प्रतिनिधित्व और उसे बढ़ाने के उपायों के बारे में बात कही गयी.

साईमन कमीशन (1928) ने स्वीकार  किया कि डिप्रेस्ड क्लासेज को पर्याप्त प्रातिनिधित्व दिया जाना चाहिए.

सन् 1930 से 1932 एक लन्दन में तीन गोलमेज़ कान्फ्रेंस हुयीं, जिन में अन्य अल्पसंख्यकों के साथ-साथ दलितों के  भी भारत के भावी संविधान के निर्माण में अपना मत देने के अधिकार को   मान्यता मिली. यह एक ऐतिहासिक  एवं निर्णयकारी परिघटना थी. इन गोलमेज़  कांफ्रेंसों में डॉ. बी. आर. आंबेडकर तथा राव बहादुर आर. श्रीनिवासन द्वारा  दलितों के प्रभावकारी प्रतिनिधित्व एवं ज़ोरदार प्रस्तुति के कारण 17 अगस्त, 1932 को ब्रिटिश सरकार द्वारा घोषित ‘कम्युनल अवार्ड‘  में दलितों को  पृथक निर्वाचन का स्वतन्त्र राजनीतिक अधिकार मिला.इस अवार्ड से दलितों को आरक्षित सीटों पर पृथक् निर्वाचन द्वारा अपने प्रतिनिधि स्वयं  चुनने  तथा साथ ही सामान्य जाति के निर्वाचन क्षेत्रों में सवर्णों को चुनने हेतु दो वोट का अधिकार भी प्राप्त हुआ. इस प्रकार भारत के इतिहास में अछूतों को  पहली वार  राजनैतिक स्वतंत्रता का अधिकार  प्राप्त हुआ, जो  उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर  सकता था.उक्त अवार्ड द्वारा दलितों  को गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट,1919 में अल्प संख्यकों के रूप में मिली मान्यता के आधार  पर अन्य अल्प संख्यकों – मुसलमानों, सिक्खों, ऐंग्लो इंडियनज तथा कुछ अन्य के साथ-साथ पृथक निर्वाचन के रूप में प्रांतीय विधायकाओं एवं केन्द्रीय एसेम्बली हेतु अपने प्रतिनिधि स्वयं  चुनने का अधिकार मिला तथा उन सभी के लिए सीटों की  संख्या निश्चित की  गयी, इसमें अछूतों के लिए 78 सीटें विशेष निर्वाचन क्षेत्रों के रूप में आरक्षित की  गयीं.

गाँधी जी ने उक्त अवार्ड की  घोषणा होने पर यरवदा (पूना) जेल में 18 अगस्त, 1932 को दलितों को मिले पृथक् निर्वाचन के अधिकार के विरोध में 20 सितम्बर, 1932 से आमरण अनशन  करने की घोषणा कर दी.

गाँधी जी का मत था कि इससे अछूत हिन्दू समाज से अलग हो जायेंगे, जिससे हिन्दू समाज व हिन्दू धर्म विघटित हो जायेगा.
यह ज्ञातव्य है कि उन्होंने मुसलमानों, सिक्खों व ऐंग्लो- इंडियनज को मिले उसी अधिकार का कोई विरोध  नहीं किया था.

गाँधी जी ने इस अंदेशे को लेकर 18 अगस्त, 1932 को तत्कालीन ब्रिटिश प्रधान मंत्री, श्री रेम्ज़े मैकडोनाल्ड को एक पत्र भेज कर दलितों को दिए गए पृथक् निर्वाचन  के अधिकार को समाप्त करके संयुक्त मताधिकार की  व्यवस्था  करने तथा हिन्दू समाज को विघटन से बचाने की अपील की. इसके उत्तर में ब्रिटिश प्रधान मंत्री ने अपने पत्र दिनांकित 8 सितम्बर, 1932 में अंकित किया,

” ब्रिटिश सरकार की  योजना के अंतर्गत दलित वर्ग हिन्दू समाज के अंग बने रहेंगे और वे हिन्दू निर्वाचन के लिए समान  रूप से मतदान करेंगे, परन्तु ऐसी व्यवस्था प्रथम 20 वर्षों तक रहेगी तथा  हिन्दू समाज का अंग रहते हुए  उनके लिए सीमित संख्या में विशेष निर्वाचन क्षेत्र होंगे ताकि  उनके अधिकारों और हितों की रक्षा हो सके. वर्तमान स्थिति में ऐसा करना नितांत आवश्यक हो गया है. जहाँ-जहाँ विशेष निर्वाचन क्षेत्र होंगे वहां वहां सामान्य हिन्दुओं के निर्वाचन क्षेत्रों में दलित वर्गों को मत देने से वंचित नहीं किया जायेगा. इस प्रकार दलितों के लिए दो मतों का अधिकार होगा – एक विशेष निर्वाचन क्षेत्र के अपने सदस्य  के लिए और दूसरा हिन्दू समाज के सामान्य सदस्य के लिए. हम ने जानबूझ  कर – जिसे आप ने अछूतों के लिए साम्प्रदायिक निर्वाचन कहा है, उसके विपरीत फैसला दिया है. दलित वर्ग के  मतदाता सामान्य अथवा हिन्दू निर्वाचन क्षेत्रों में सवर्ण  उम्मीदवार को मत दे सकेंगे तथा सवर्ण हिन्दू  मतदाता दलित वर्ग के उम्मीदवार को उसके निर्वाचन क्षेत्र में मतदान क़र सकेंगे. इस प्रकार हिन्दू समाज की  एकता को सुरक्षित रखा गया है.”

कुछ अन्य तर्क देने के बाद उन्होंने गाँधी जी से  आमरण अनशन छोड़ने का आग्रह किया था.

परन्तु गाँधी जी ने प्रत्युत्तर में आमरण अनशन को अपना पुनीत धर्म मानते हुए कहा कि दलित वर्गों को केवल दोहरे  मतदान का अधिकार  देने से उन्हें तथा हिन्दू समाज को छिन्न – भिन्न  होने से नहीं रोका जा सकता.

गांधी जी ने आगे कहा,

“मेरी समझ में दलित वर्ग के लिए पृथक निर्वाचन की  व्यवस्था  करना हिन्दू धर्म  को बर्बाद करने का इंजेक्शन लगाना है. इस से दलित वर्गों का कोई लाभ नहीं होगा.”

गांधी जी ने इसी प्रकार के तर्क दूसरी और तीसरी गोल मेज़ कांफ्रेंस में भी दिए थे जिसके प्रत्युत्तर में डॉ. आंबेडकर ने गाँधी जी के दलितों के भी अकेले प्रतिनिधि और उनके शुभचिन्तक होने के दावे को नकारते हुए उनसे दलितों के राजनीतिक अधिकारों का विरोध न करने का अनुरोध किया था. उन्होंने यह भी कहा था कि फिलहाल दलित केवल स्वतन्त्र राजनीतिक अधिकारों की  ही मांग कर रहे हैं न कि हिन्दुओं  से अलग हो कर अलग देश बनाने की. परन्तु गाँधी जी का सवर्ण हिन्दुओं के हित को सुरक्षित रखने और अछूतों को  हिन्दू समाज का गुलाम बनाये रखने का स्वार्थ था. यही कारण था कि उन्होंने सभी तथ्यों व तर्कों को नकारते हुए 20 सितम्बर, 1932 को अछूतों के पृथक निर्वाचन के अधिकार के विरुद्ध आमरण अनशन शुरू कर दिया.यह एक विकट स्थिति थी. एक तरफ गाँधी जी के पक्ष में एक विशाल शक्तिशाली हिन्दू समुदाय था,  दूसरी  तरफ डॉ. आंबेडकर और अछूत  समाज.
अंतत  भारी  दबाव  एवं   अछूतों के संभव जनसंहार के भय तथा  गाँधी जी की जान बचाने के उद्देश्य से डॉ. आंबेडकर तथा उनके  साथियों को दलितों के पृथक निर्वाचन के अधिकार  (Rights of separate electorate of Dalits) की बलि देनी पड़ी और सवर्ण हिन्दुओं से 24 सितम्बर, 1932 को  तथाकथित पूना पैक्ट (Poona Pact in Hindi) करना पड़ा.

इस प्रकार अछूतों को गाँधी जी की जिद के कारण अपनी राजनैतिक आज़ादी के अधिकार को खोना पड़ा.

यद्यपि पूना पैक्ट  के अनुसार दलितों के लिए ‘ कम्युनल अवार्ड’ में सुरक्षित सीटों की संख्या बढ़ा कर 78 से 151 हो गयीं, परन्तु संयुक्त निर्वाचन के कारण उनसे अपने प्रतिनिधि स्वयं चुनने का अधिकार छिन्न  गया जिसके दुष्परिणाम आज तक दलित समाज झेल रहा है.

पूना पैक्ट के प्रावधानों
(Provisions of the Poona Pact) को गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट, 1935 (Government of India Act 1935) में शामिल करने के बाद सन् 1937 में प्रथम चुनाव संपन्न हुआ जिसमें  गाँधी जी के दलित प्रतिनिधियों को कांग्रेस द्वारा कोई भी दखल न देने के दिए गए आश्वासन के बावजूद कांग्रेस ने 151 में से 78 सीटें हथिया लीं, क्योंकि संयुक्त निर्वाचन प्रणाली में दलित पुनः सवर्ण वोटों पर निर्भर हो गए थे.

गाँधी जी और कांग्रेस के इस छल से खिन्न होकर डॉ. आंबेडकर ने कहा था, “पूना पैकट  में दलितों के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है.”

कम्युनल अवार्ड के माध्यम से अछूतों के पृथक् निर्वाचन के रूप में अपने प्रतिनिधि स्वयं चुनने  और दोहरे वोट के अधिकार से सवर्ण हिन्दुओं की भी दलितों पर निर्भरता से दलितों का स्वंतत्र राजनीतिक अस्तित्व  सुरक्षित रह सकता था, परन्तु  पूना पैक्ट  करने की विवशता ने दलितों को फिर से सवर्ण हिन्दुओं का गुलाम बना दिया. इस व्यवस्था  से आरक्षित सीटों पर  जो सांसद या विधायक चुने जाते हैं वे वास्तव में दलितों द्वारा न चुने जा कर विभिन्न राजनैतिक पार्टियों एवं सवर्णों द्वारा चुने जाते हैं, जिन्हें उन का गुलाम/ बंधुआ बन कर रहना पड़ता है.

सभी राजनैतिक पार्टियाँ गुलाम मानसिकता वाले ऐसे प्रतिनिधियों पर  कड़ा नियंत्रण रखती हैं और पार्टी लाइन से हट कर किसी भी दलित मुद्दे को उठाने या उस पर  बोलने की इजाजत नहीं देतीं. यही कारण है कि लोकसभा तथा विधान सभाओं में दलित प्रतिनिधियों की स्थिति महाभारत  के भीष्म पितामह जैसी रहती है जिस ने  यह पूछने पर कि “जब कौरवों के दरबार में द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था तो आप क्यों नहीं बोले?” इस पर उन का उत्तर था, ” मैंने कौरवों का नमक खाया था.”

वास्तव में कम्युनल अवार्ड से दलितों को स्वंतत्र राजनैतिक अधिकार प्राप्त हुए थे, जिससे वे  अपने प्रतिनिधि स्वयं चुनने के लिए सक्षम हो गए थे और वे उनकी आवाज़ बन सकते थे. इस के साथ ही दोहरे वोट के अधिकार के कारण सामान्य निर्वाचन क्षेत्र में सवर्ण  हिन्दू भी उन पर निर्भर रहते  और दलितों को नाराज़ करने की हिम्मत नहीं करते. इस से हिन्दू समाज में एक नया समीकरण बन सकता था जो दलित मुक्ति का रास्ता प्रशस्त करता. 

परन्तु गाँधी जी ने हिन्दू समाज और हिन्दू धर्म  के विघटित होने की  झूठी दुहाई दे कर तथा आमरण अनशन का अनैतिक हथकंडा अपना कर दलितों की राजनीतिक स्वतंत्रता का हनन कर लिया जिस कारण दलित फिर से सवर्णों  के राजनीतिक गुलाम बन गए.वास्तव  में गाँधी जी की चाल काफी हद तक राजनीतिक भी थी जो कि बाद में उनके एक अवसर पर सरदार पटेल को कही गयी इस  बात से भी स्पष्ट है:

“अछूतों के अलग मताधिकार के परिणामों से मैं भयभीत हो उठता हूँ. दूसरे वर्गों के लिए अलग निर्वाचन अधिकार के बावजूद भी मेरे पास उनसे सौदा करने की गुंजाइश रहेगी, परन्तु मेरे पास अछूतों से सौदा करने का कोई साधन नहीं रहेगा. वे नहीं जानते कि पृथक निर्वाचन हिन्दुओं को इतना बाँट देगा कि उसका अंजाम खून खराबा होगा. अछूत गुंडे, मुसलमान गुंडों से मिल जायेंगे और हिन्दुओं को मारेंगे. क्या अंग्रेजी  सरकार को इस का कोई अंदाज़ा नहीं है? मैं ऐसा नहीं सोचता.” (महादेव  देसाई, डायरी, पृष्ठ 301,  प्रथम खंड).

गाँधी जी के इस सत्य कथन से आप गाँधी जी द्वारा अछूतों को पूना पैक्ट  करने के लिए बाध्य करने के असली उद्देश्य का अंदाज़ा लगा सकते हैं.

दलितों की संयुक्त  मताधिकार व्यवस्था
(Joint voting system of dalits) के कारण सवर्ण हिन्दुओं पर निर्भरता के फलस्वरूप  दलितों की कोई भी राजनैतिक पार्टी पनप नहीं पा  रही है चाहे वह डॉ. आंबेडकर द्वारा स्थापित  रिपब्लिकन पार्टी ही क्यों न हो. इसी कारण डॉ. आंबेडकर को भी दो बार चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा, क्योंकि आरक्षित सीटों पर  सवर्ण वोट ही निर्णायक होता है. इसी कारण सवर्ण पार्टियाँ ही अधिकतर आरक्षित सीटें जीतती हैं.

Poona Pact’s ill effects

1.पूना पैक्ट के इन्हीं दुष्परिणामों के कारण ही डॉ. आंबेडकर ने संविधान में राजनैतिक आरक्षण को केवल 10 वर्ष तक ही जारी रखने की बात कही थी. परन्तु विभिन्न राजनीतिक पार्टियाँ इसे दलितों के हित में नहीं बल्कि अपने स्वार्थ के लिए अब तक लगातार 10-10 वर्ष तक  बढ़ाती  चली आ रही हैं, क्योंकि इस से उन्हें अपने मनपसंद और गुलाम  दलित सांसद और विधायक चुनने की सुविधा रहती है.

2.लेकिन सरकारी नौकरियों में दलितों का सदैव आरक्षण बना रहेगा और उनकी सरकारी नौकरियों, प्रशासनिक सेवाओं में सदैव प्रतिनिधित्व रहेगा ।

लेकिन कुछ राजनीतिक पार्टियों द्वारा इससे अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए सरकारी नौकरियों में मिले आरक्षण को भी 10 साल के लिए बताती हैं जबकि ऐसा नहीं था।

सवर्ण हिन्दू राजनीतिक पार्टियाँ दलित नेताओं को खरीद लेती हैं और दलित पार्टियाँ कमज़ोर हो कर टूट जाती  हैं. यही कारण है कि  उत्तर भारत में तथाकथित दलितों की कही जाने वाली बहुजन समाज पार्टी भी ब्राह्मणों और बनियों के पीछे घूम रही है और “हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश है” जैसे नारों को स्वीकार करने के लिए बाध्य है. अब तो उसका रूपान्तरण बहुजन से सर्वजन में हो गया है.

इन परिस्थितियों के कारण दलितों का बहुत  अहित हुआ है, वे राजनीतिक तौर प़र  सवर्णों  के गुलाम बन कर रह गए हैं.

अतः इस सन्दर्भ  में पूना पैक्ट के औचित्य की समीक्षा (Review of Poona Pact Justification) करना समीचीन होगा. क्या दलितों को पृथक निर्वाचन की मांग पुनः उठाने के बारे में नहीं सोचना चाहिए?

यद्यपि पूना पैक्ट की शर्तों में छुआ-छूत को समाप्त करने, सरकारी सेवाओं में आरक्षण देने तथा दलितों की शिक्षा के लिए बजट का प्रावधान करने की बात थी, परन्तु आजादी के 65 वर्ष बाद भी उनके क्रियान्वयन की स्थिति  दयनीय ही है.

डॉ. आंबेडकर ने अपने इन  अंदेशों को पूना पैक्ट के अनुमोदन हेतु बुलाई गयी  25 सितम्बर, 1932 को बम्बई में सवर्ण हिन्दुओं की बहुत बड़ी मीटिंग में व्यक्त करते हुए कहा था,

“हमारी एक ही चिंता है. क्या हिन्दुओं की भावी पीढ़ियां इस समझौते का अनुपालन करेंगी ?”

इस पर सभी सवर्ण हिन्दुओं ने एक स्वर में कहा था, “हाँ, हम करेंगे.”

लेकिन वर्तमान युग में सवर्ण हिंदुओं द्वारा आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग करते हैं। और वंचितों का आरक्षण समाप्त करने की मांग करते हैं। जो कि बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।

डॉ. आंबेडकर ने यह भी कहा था,

हम देखते हैं कि दुर्भाग्यवश हिन्दू सम्प्रदाय एक संगठित समूह नहीं है बल्कि विभिन्न सम्प्रदायों की फेडरेशन  है. मैं आशा  और विश्वास करता हूँ कि आप अपनी तरफ से इस अभिलेख को पवित्र मानेंगे तथा एक सम्मानजनक भावना  से काम करेंगे.”

क्या आज सवर्ण हिन्दुओं को अपने पूर्वजों द्वारा दलितों के साथ किये गए इस समझौते को ईमानदारी से लागू करने के बारे में थोड़ा  बहुत आत्म चिंतन नहीं करना चाहिए. यदि वे इस समझौते को ईमानदारी से लागू करने में अपना अहित देखते हैं तो क्या उन्हें दलितों के पृथक निर्वाचन का राजनैतिक अधिकार लौटा नहीं देना चाहिए?

मेरे विचार में अब समय आ गया है जब दलितों को संगठित हो कर आरक्षित सीटों पर वर्तमान संयुक्त चुनाव प्रणाली की जगह पृथक चुनाव प्रणाली की मांग उठानी चाहिए ताकि वे अपने प्रतिनिधियों को सवर्णों की जगह स्वयम चुनने में सक्षम हो सकें.

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रीवा:- सेमरिया बिंसिनपुर सड़क मार्ग टोल प्लाजा में भारतीय मुद्रा का अपमान। सिक्के लेने से इनकार और यह देना की सिक्का नहीं चलता। मनमानी तरीके से जनता से पैसे वसूले जा रहे और चंद नेताओ के नाम का प्रयोग करके जनता को टोल वसूलीकर्ता द्वारा गुंडागर्दी और धमकाया जा रहा। और गुंडागर्दी इतनी की वाहन का सही नम्बर भी नहीं लिखा जा रहा और मनमानी तरीके से कार्यरत। 

~चन्द्रांकित भार्गव 

Rewa News: नगर निगम क्षेत्र अंतर्गत खैरा नई बस्ती वार्ड क्र.4 में चालीस वर्षों से नहीं बनी सड़क और नाली आखिर जिम्मेदार कौन?

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यहाँ खैरा नई बस्ती वार्ड क्रमांक 4 में सुलभ काम्प्लेक्स के सामने वाली  सड़क और नाली नहीं बनी होने के कारण बरसात के समय जगह जगह जलभराव हो जाता है।

यहाँ सुलभ काम्प्लेक्स तो है पर उसके सामने की सड़क अधूरी होने के कारण खैरावासी इस सुलभ काम्प्लेक्स का लाभ नहीं ले पा रहे हैं।

आपको बता दें यह खैरा नई बस्ती 2003 से वार्ड क्रमांक 4 नगर निगम में शामिल हुआ था। सबसे पहले यह ग्राम पंचायत में आया करता था तब से लेकर आज तक ना तो सब किसी सरपंच ने और ना ही किसी पार्षद ने और ना ही विधायक ने और ना ही जिला प्रशासन ने सड़क और नाली जैसे मूलभूत सुविधाओं के निर्माण की सुध ली।खैरा वार्ड क्रमांक 4 में नाली और सड़क अब तक एक बार भी नहीं बानी है | (इस पर मध्यप्रदेश शासन ) सांसद , विधायक और नगर निगम की सड़क और नाली बनवाने में कभी रुचि नहीं रही है| केवल अपने कार्यकर्ताओं को लाभ पहुंचाने में लगे रहे।

आम जनता द्वारा कई बार सीएम हेल्पलाइन द्वारा शिकायत की जा चुकी लेकिन इसका निराकरण ना कर इस शिकायत को दवा लिया जाता है।

यहां खैरा नई बस्ती वार्ड क्रमांक 4 में सुलभ कांप्लेक्स तो है, लेकिन उसके सामने वाली सड़क आधी बना कर छोड़ दिया गया है और नाली तो बनी ही नहीं है। कांप्लेक्स के सामने की सड़क लगभग 170 मीटर की है। यहां सड़क और नाली नहीं बनी होने के कारण बरसात के समय जल भराव, कीचड़ हो जाता है और बच्चों को स्कूल कॉलेज कोचिंग अपने काम से बाहर जाने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और नौकरी पेशा लोगों को अपने कार्यस्थल पर जाने में काफी कठिनाई होती है।
 यहां सुलभ कांप्लेक्स तो है, लेकिन उसके सामने की सड़क अधूरी होने के कारण खैरा वासी इस सुलभ कांप्लेक्स का लाभ तक नहीं ले पा रहे हैं।

सड़क और नाली नहीं होने के कारण घर के बेकार पानी को यूंही मुख्य मागव में छोड़ दिया जाता है,जिससे गंदगी फैलती है, कई घरों से शौच का पानी ही निकलने से रास्ता चलना दभूर हो जाता है, जिससे गंदगी फैलती है और बरसात के समय निकासी की समस्या विकट हो जाती है।एक तो मच्छरों का प्रकोप व दसूरे गंदे पानी की समस्या से बीमारियां फैल जाती हैं।जिससे मलेरिया टाइफाइड चिकनगुनिया और कई प्रकार के रोग फैलते हैं।

सड़क नहीं होने के कारण यदि यहां कोई बीमार हो जाता है तो उसको ले जाने के लिए एंबुलेंस तक नहीं आप आती है।

सड़क नहीं होने के कारण घरों से निकलने वाला कचड़े को ले जाने के लिए नगर निगम द्वारा कचरा गाड़ी भी अंदर नहीं आ पाती है।

Rewa News: पूर्व मंत्री एवं विधायक राजेंद्र शक्ला जी का मनाया गया जन्मदिन।

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शुभम शुक्ला ने बताया और शुभकामनाए दी।

Rewa News:- रीवा शहर के विकास पुरुष कहे जाने वाले पूर्व मंत्री एवं विधायक राजेंद्र शुक्ला जी का जन्मदिन विभिन्न संगठनों, कार्यकर्ताओं ने मनाया। शुक्ला जी के जन्मदिन के उपलक्ष्य पर रीवा जिला के कई संगठन डॉक्टर कर्मचारियों व्यापारियों द्वारा अपने अपने तरीके से शुक्ला जी को जन्मदिन की शुभकामनाएं दी। विधायक जी द्वारा अपने जन्मदिन के मौके पर कई जगहों पर वृक्षारोपण किया और रीवा जिला को ग्रीन सिटी बनाने का संकल्प लिया और आम जनता को ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने के लिए प्रेरित किया। और विधायक राजेंद्र शुक्ला जी अपने जन्मदिन पर भगवान के दर्शन कर आशीर्वाद लिया।
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