आज दुनिया इस दौर में पहुंच चुकी है कि एक महामारी ने सोचने पर इंसानों को मजबूर कर दिया कि अगर कोई आगे से महामारी आई तो दुनिया नष्ट ना हो जाए इंसानों का डर भी सही है क्योंकि इंसान महसूस करने लगे है कि उसने अपने हाथों बहुत कुछ नष्ट कर दिया है प्रकृति के साथ बहुत ही खिलवाड़ किया है मनुष्य ने आज खुद की सुख सुविधा तरक्की के नाम पर प्रकृति का सीना छलनी कर दिया है पहाड़ों से लेकर पेड़ नदिया जितने भी प्रकृति के स्त्रोत हैं सभी पर इंसानों की नजर है इंसान प्रकृति का अंधाधुंध दोहन कर रहा है यह महामारी उसी का एक नतीजा है आज अस्पतालों में सांस लेने की तकलीफ हो रही है यह सब इंसानों ने अपने साथ जानबूझकर किया है खुद के भले के लिए पेड़ पौधे पहाड़ पर्वत नदियां सभी कुछ नष्ट कर दिया है यह महामारी इंसान के नाम एक संदेश लेकर आई है कि अगर इंसान अभी भी नहीं सुधरा अर्थात प्रकृति से प्रेम नहीं किया तो आने वाला समय आने वाली पीढ़ी के लिए और भी ज्यादा खतरनाक विकराल रूप में महामारी को पेश करेगा।
हो सकता है यह महामारीयो का प्रारंभिक दौर हो और आगे और भी भयानक महामारी आए अगर इंसानों ने अपने आप में सुधार नहीं किया और प्रकृति को प्रेम नहीं किया तो इंसानों के कारण दुनिया के हर जीव पर अंततः का खतरा मंडरा जाएगा
सजी रहने दे कुदरत की महफिल, ना उसे अपने हाथों से छेड़
हो सके तो अपना रिश्ता निभा जमी, से लगा अपने हाथों से पेड़
महेश राठौर सोनू
अंतर्राष्ट्रीय रचनाकार
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