"मासूम सा फ़रिश्ता है वो, जिसे मां के आंचल में खिलना था, जिस जीवन में हंसना था वो आंसू पीकर मजबूत बना" । इसी प्रकार "जिस देश में बच्चों का भविष्य सुरक्षित नहीं वह देश भी सुरक्षित नहीं"।
बालश्रम की कालिख से ये कैसा बचपन गुजर रहा, ये कैसी गुमनामी के अंधेरे में हमारा देश पनप रहा है? दशकों से भारत बालश्रम के नासूर को ढो रहा है। देश का बचपन अपने सुनहरे सपनों की जगह कभी किसी के घर को चमका रहा है या अपने नाजुक कंधो से बोझा ढोकर अपने परिवार का पेट पाल रहा है। यद्दपि भारत सरकार ने बालश्रम की समस्या को समाप्त करने के लिए अपने कदम उठाए हैं। लेकिन वह सब नाकाफी ही लग रहे है क्योंकि क्रियान्वयन ईमानदारी से नहीं हो रहा है,जिन्हें बचपन को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी दी गई है वह सिर्फ कागजी तीर चला रहे है हकीकत से कोसों दूर है ।
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन के द्वारा वर्ष 2016 में लिए गए डाटा से पता चलता है कि भारत बाल श्रम से बच्चों को मुक्त करने के मामले में अभी भी मीलों दूर है।
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट 'बाल श्रम के वैश्विक अनुमान, परिणाम और रुझान, 2012-2016' में कहा गया है कि पांच और 17 वर्ष की उम्र के बीच 152 मिलियन बच्चों को अवांछनीय परिस्थितियों में श्रम करने को मजबूर किया जा रहा है।
बचपन बचाओ आंदोलन व कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के आधे से अधिक बच्चों को गरीबी, संघर्ष और लड़कियों के खिलाफ भेदभाव का खतरा है। ये बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं यहांं तक कि स्वास्थ्य देखभाल तथा भोजन जैसी मूलभूत आवश्यकताओं से भी वंचित रहते हैं। इन बच्चों से उनकी मासूमियत छीन ली गई है और उनका बचपन एवं भविष्य जिसका उन्हें हक़ है वह भी छीन लिया गया है।
क्या है बाल श्रम:-
बाल श्रम आमतौर पर मजदूरी के भुगतान के बिना या भुगतान के साथ बच्चों से शारीरिक कार्य कराना है। बाल श्रम केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, यह एक वैश्विक घटना है। भारतीय संविधान के अनुसार किसी उद्योग, कल-कारखाने या किसी कंपनी में मानसिक या शारीरिक श्रम करने वाले 5 - 14 वर्ष उम्र के बच्चों को बाल श्रमिक कहा जाता है। वहीं संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार - 18 वर्ष से कम उम्र के श्रम करने वाले लोग बाल श्रमिक हैं।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार - बाल श्रम की उम्र 15 साल तय की गई है। अमेरिका में - 12 साल या उससे कम उम्र के लोगों को बाल श्रमिक माना जाता है।
भारत में 1979 में सरकार द्वारा बाल मजदूरी को खत्म करने के उपाय के रूप में गुरूपाद स्वामी समिति का गठन किया गया। जिसके बाद बालश्रम से जुड़ी सभी समस्याओं के अध्ययन के बाद गुरूपाद स्वामी समिति द्वारा सिफारिश प्रस्तुत की गई, जिसमें गरीबी को मजदूरी के मुख्य कारण के रूप में देखा गया और ये सुझाव दिया गया, कि खतरनाक क्षेत्रों में बाल मजदूरी पर प्रतिबंध लगाया जाए एवं उन क्षेत्रों के कार्य के स्तर में सुधार किया जाए। समिति द्वारा बाल मजदूरी करने वाले बच्चों की समस्याओं के निराकरण के लिए बहुआयामी नीति की जरूरत पर भी बल दिया गया।
1986 में समिति के सिफारिश के आधार पर बाल मजदूरी प्रतिबंध विनियमन अधिनियम अस्तित्व में आया, जिसमें विशेष खतरनाक व्यवसाय व प्रक्रिया के बच्चों के रोजगार एवं अन्य वर्ग के लिए कार्य की शर्तों का निर्धारण किया गया।
इसके बाद सन 1987 में बाल मजदूरी के लिए विशेष नीति बनाई गई, जिसमें जोखिम भरे व्यवसाय एवं प्रक्रियाओं में लिप्त बच्चों के पुर्नवास पर ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
बच्चों की समस्याओं पर विचार करने के लिए एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय प्रयास उस समय हुआ, जब अक्टूबर 1990 में न्यूयार्क में इस विषय पर एक विश्व शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें 151 राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया तथा गरीबी, कुपोषण व भुखमरी के शिकार दुनिया भर के करोड़ों बच्चों की समस्याओं पर विचार-विमर्श किया गया। इस दिशा में बचपन बचाओ आन्दोलन के प्रणेता व विश्व के सबसे बड़े बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्यार्थी के प्रयास मील के पत्थर साबित हुए । उन्होंने कई बड़ी यात्राएं दुनिया भर में बाल मजदूरी के खात्मे व अनिवार्य शिक्षा के लिए निकाली । बाल व्यापार के विरुद्ध उन्होंने पूरी दुनिया को एकजुट किया । भारत में बड़ी तादाद में बच्चों को बाल श्रम के दलदल से मुक्त ही नहीं कराया बल्कि उनका पूनर्वास भी कराया । उनके नेतृत्व में बाल श्रम के विरुद्ध बड़ा आंदोलन खड़ा किया गया ।
10 अक्टूबर 2006 तक बालश्रम क़ानून को इस असमंजस में रखा गया की किसे खतरनाक और किसे गैर खतरनाक बाल श्रम की श्रेणी में रखा जाए। उसके बाद बाल श्रम निवारण अधिनियम 1986 में संशोधन कर ढाबों, घरों, होटलों में बालश्रम करवाने को दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया।
बाल श्रम के कारण:-
हमारे अनुसार बच्चों का किसी संस्था में नियोजन इसलिए किया जाता है, क्योंकि उनका आसानी से शोषण किया जा सकता है। बच्चे अपनी उम्र के अनुरूप कठिन काम जिन कारणों से करते हैं, उनमें आमतौर पर गरीबी पहला कारण है। इसके अलावा, जनसंख्या विस्फोट, सस्ता श्रम, उपलब्ध कानूनों का लागू नहीं होना, बच्चों को स्कूल भेजने के प्रति अनिच्छुक माता-पिता (वे अपने बच्चों को स्कूल की बजाय काम पर भेजने के इच्छुक होते हैं, ताकि परिवार की आय बढ़ सके) जैसे अन्य कारण भी हैं।
किन - किन रूपों में होता है बाल श्रम ?
बाल मज़दूर - वे बच्चे जो कारखानों, कार्यशालाओं, प्रतिष्ठानों, खानों और घरेलू श्रम जैसे सेवा क्षेत्र में मज़दूरी या बिना मज़दूरी में काम कर रहे हैं।
गली - मोहल्ले के बच्चे - कूड़ा बीनने वाले, अखबार और फेरी लगाने वाले और भीख मांगने वाले।
बंधुआ बच्चे - वे बच्चे जिन्हें या तो उनके माता-पिता ने पैसों की ख़ातिर गिरवी रखा है या जो कर्ज़ को चुकाने के चलने मज़बूरन काम कर रहे हैं।
वर्किंग चिल्ड्रन - वे बच्चे जो कृषि में और घर-गृहस्थी के काम में पारिवारिक श्रम का हिस्सा हैं।
यौन शोषण के लिए इस्तेमाल किए गए बच्चे - हजारों बालिक बच्चे और नाबालिक लड़कियां यौन शोषण की जद में हैं।
घरेलू गतिविधियों में लगे बच्चे - घरेलू सहायता के रूप में काम। इसमें लड़कियों का शोषण सबसे ज़्यादा है - बच्चे छोटे भाई-बहनों की देखभाल, खाना पकाने, साफ-सफाई और ऐसी अन्य घरेलू गतिविधियों में लगे हुए हैं।
बाल श्रम के कारण :- बढ़ती जनसंख्या,गरीबी,खाद्य असुरक्षा,अशिक्षा,बेरोज़गारी,अनाथ होना,मौजूदा क़ानूनों का लागू न होना,सस्ता श्रम ।
बाल श्रम से उत्पन्न समस्या:-
बाल श्रम एक सामाजिक, आर्थिक और राष्ट्रीय समस्या है। इसके चलते -बच्चे शिक्षा से दूर हो जाते हैं,स्वास्थ्य पर बुरा असर,बच्चों से दुर्व्यवहार,विस्थापन और असुरक्षित प्रवासन,यौन शोषण के लिए ग़ैर क़ानूनी ख़रीद - फ़रोख़्त (चाइल्ड पोर्नग्राफी),भिक्षावृत्ति,मानवअंगों का कारोबार,बाल अपराध ।
खेल कूद और मनोरंजन जैसे ज़रूरी गतिविधियां प्रभावित:-इन सब के चलते बच्चों का शरीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है जोकि बच्चों के व्यक्तित्व के विकास में मुश्किलें खड़ी करता है।
बाल श्रम के लिए संवैधानिक प्रावधान:-
भारतीय संविधान में बाल मजदूरी पर लगाम लगाने के लिए कई प्रावधान हैं। संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप भारत का संविधान मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धातों की विभिन्न अनुच्छेदों के माध्यम से कहता है-
अनुच्छेद 15 (3) - बच्चों के लिए अलग से क़ानून बनाने का अधिकार देता है।
अनुच्छेद 21 - (6 -14) वर्ष के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार।
अनुच्छेद 23 - बच्चों की ख़रीद और बिक्री पर रोक लगाता है।
अनुच्छेद 24 - 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को ख़तरनाक कामों में प्रतिबन्ध लगाया गया है।
अनुच्छेद 39 - नीति निर्देशक सिद्धांत के अंतर्गत आने वाला ये अनुच्छेद में बच्चों के स्वास्थ्य और उनके शारीरिक विकास के लिए ज़रूरी सुविधाएं उपलब्ध कराने का आदेश देता है। राज्य अपनी नीतियाँ इस तरह निर्धारित करेंगे कि श्रमिकों, पुरुषों और महिलाओं का स्वास्थ्य तथा उनकी क्षमता सुरक्षित रह सके तथा बच्चों की कम उम्र का शोषण न हो एवं आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये वे अपनी उम्र व शक्ति के प्रतिकूल काम में प्रवेश करें।
अनुछेद 45 - नीति निर्देशक सिद्धांत के अंतर्गत आने वाला इस अनुच्छेद में भी 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की देखभाल और शिक्षा की ज़िम्मेदारी राज्यों की है। बच्चों को स्वस्थ तरीके से स्वतंत्र व सम्मानजनक स्थिति में विकास के अवसर तथा सुविधाएँ दी जायेंगी और बचपन व जवानी को नैतिक व भौतिक दुरुपयोग से बचाया जाएगा।
संविधान लागू होने के 10 साल के भीतर राज्य 14 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों को मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा देने का प्रयास करेंगे।
बाल श्रम एक ऐसा विषय है, जिस पर संघीय व राज्य सरकारें, दोनों कानून बना सकती हैं।
अनुच्छेद 51 A - माता पिता पर बच्चों की शिक्षा के लिए अवसर प्रदान करने का एक मौलिक कर्तव्य निर्धारित करता है।
बाल अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए भारतीय कानून:-
कारखाना अधिनियम 1948 - 14 साल तक की आयु वाले बच्चों को कारखाने में काम करने से रोकता है।15 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्टरी में तभी नियुक्त किये जा सकते हैं, जब उनके पास किसी अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो। इस कानून में 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिये हर दिन साढ़े चार घंटे की कार्यावधि तय की गई है और उनके रात में काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। धारा 24- 14 साल से कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्ट्री या खदान में कार्य करने के लिए नियुक्त नहीं किया जाएगा और ना ही किसी खतरनाक नियोजन में नियुक्त किया जाएगा। न्यायालय ने यह आदेश भी दिया था कि एक बाल श्रम पुनर्वास सह कल्याण कोष की स्थापना की जाए, जिसमें बाल श्रम कानून का उल्लंघन करने वाले नियोक्ताओं के अंशदान का उपयोग हो।
खदान अधिनियम 1952 - 18 साल से कम आयु वाले बच्चों को खदानों में काम करने पर प्रतिबन्ध लगाता है
अनैतिक तस्करी (बचाव) अधिनियम 1956
बाल श्रम (निषेध व नियमन) कानून 1986- यह कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी अवैध पेशे और 57 प्रक्रियाओं में, जिन्हें बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के लिये अहितकर माना गया है, नियोजन को निषिद्ध बनाता है। इन पेशों और प्रक्रियाओं का उल्लेख कानून की अनुसूची में है।
राष्ट्रीय बाल श्रम नीति 1987:-
किशोर न्याय देखभाल और संरक्षण अधिनियम 2000 - बच्चों के रोज़गार को दंडनीय
बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006
राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग 2007 - बाल अधिकारों के उल्लंघन के जुड़े मसले को सुलझाने का काम
निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012
किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम 2015
जरूरत के हिसाब से 1986 के बाल मजदूरी कानून में संशोधन किया गया है ।
बाल श्रम को रोकने के लिए सरकारी योजनाएं:-
बाल फिल्म सोसायटी 1955
एकीकृत बाल संरक्षण योजना (ICPS) 2009 -10
ICPS के तहत अलग - अलग बाल संरक्षण कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। इनमें -
बाल न्याय के लिए कार्यक्रम।
फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों के लिए एकीकृत कार्यक्रम।
एक ही जगह विस्तृत नियमों और नए कार्यक्रमों सहित देश के भीतर बच्चों को गोद देने को बढ़ावा देने के लिए गृहों (शिशु गृह) को सहायता देने की योजना।
राष्ट्रीय बाल भवन राष्ट्रीय
खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013
बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) संशोधन विधेयक 2016
बाल मज़दूरी से आज़ाद कराए गए बच्चों के पुनर्वास के लिए सरकार ने राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना लागू की थी। इस परियोजना का मक़सद बाल मज़दूरी से आज़ाद कराए गए बच्चों का विशेष स्कूलों में दाख़िला कराया जाता है। जहां उन्हें औपचारिक शिक्षा प्रणाली में डालने से पहले शिक्षा, व्यवसायिक प्रशिक्षण, पौष्टिक आहार और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। लेकिन वर्तमान समय में इस परियोजना की स्थिति बहुत दयनीय हो चुकी है । कई वर्षों से कई जिलों में इस परियोजना के फंड को रोक रखा है जिस कारण हजारों बच्चों की छात्रवृति आदि नहीं मिली है साथ स्कूल संचालकों के लाखों रुपये नहीं दिए गए जिस कारण परियोजना की स्थिति गम्भीर बनी हुई है ।
भारत में कुछ गैर सरकारी संगठन भी बाल मज़दूरी को रोकने के लिए काम कर रहे हैं। जिनमें बचपन बचाओं आंदोलन,कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फाउंडेशन ने इस दिशा में अनुकरणीय कार्य किये है ।
हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस बाल श्रमिकों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिक संगठनों, नागरिक समाज के साथ-साथ दुनिया भर के लाखों लोगों को जागरूक करता है और उनकी मदद के लिए कई कैंपेन भी चलाए जाते हैं।
बाल श्रम जिम्मेदार अधिकारियों की आंखों के सामने चलता है और अधिसूचित बाल श्रम कानून शायद ही कभी लागू होते हैं। ये भी सच है की बाल श्रम पर अंकुश लगाने के लिए कई संगठन, आईएलओ आदि प्रयास कर रहे हैं। लेकिन हमें भी जिम्मेदार होना चाहिए और अपने कर्तव्यों को बाल श्रम को खत्म करने में मदद करना चाहिए।
अंत में यही बात रखूँगा कि बाल श्रम को रोके बिना भारत की तरक्की अधूरी है क्योंकि अगर बाल श्रम रहेगा तो अशिक्षा,बेरोजगारी व गरीबी बढ़ेगी । जब बड़ों की जगह सस्ते मजदूर के रूप में बच्चे काम करेंगे तो वयस्कों के रोजगार खत्म होंगे जिससे बेरोजगारी, गरीबी बढ़ेगी जब यह सब हो रहा है तो भारत की तरक्की कैसे होगी यह विचारणीय है ।
आज विश्व बाल श्रम प्रतिषेध दिवस पर मैं यही कहूँगा कि बाल अधिकारों के बिना भारत की तरक्की है अपूर्ण, बाल मजदूरी रोककर करो इसे परिपूर्ण।
लेखक-
डॉ राघवेन्द्र सिंह तोमर
बाल अधिकार कार्यकर्ता
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